Saturday, 12 December 2020

राजभर और भारत


राजभर और भारत 

 मिर्जापुर

मि. शोरिंग साहब मिर्जापुर के इतिहास के सम्बन्ध मे वर्णन करते है, कि भरो का प्रान्त अधिकतर गंगा के दक्षिण मे पड़ता है ! इसके प्रमाण स्वरुप अब भी अनेको किले गंगा के दक्षिण मे पाए जाते है ! मिर्जापुर नगर के पश्चिम मे भरो का एक प्राचीन किला है, जिसे उसके समीपी पम्पापुर के नाम से पुकारते है ! लेकिन प्राचीन नाम कुछ और है ! पम्पापुर नाम भार-राज्य के नष्ट होने पर लोगो ने रख दिया ! इस खंडहर कि प्राचीन मुर्तिया व सामग्री आदि देखने से प्रकट होता है कि यह किला किसी समय बड़े राज्य कि राजधानी का काम देता रहा होगा ! इस राजधानी के पास विन्ध्याचल का क़स्बा है तथा विन्ध्वास्नी देवी का मंदिर है ! यहाँ भारत के विभिन्न प्रान्तों के लोग उपासना हेतु आते है !

यहाँ लगभग १५० मंदिरे थी जिसे बादशाह औरंगजेब अपने शासन काल मे किसी कारण वश तुडवा दिए ! यहाँ विस्तृत क्षेत्र मे यह किला खंडहर के रूप मे दिखलाई पड़ता है ! इस किले के प्राचीन स्मृति आदि के सम्बन्ध मे मि. फरग्युसन साहब ने :ट्री एंड सरपेंट वरशिप ऑफ़ इंडिया" नामक पुस्तक मे बहुत अनुशंधन के बाद लिखा है कि इस स्थान का सम्बन्ध भर जाति से है ! भर जाति के लोग लगभग १४ वी. शादी तक इस प्रान्त पर शासन करते रहे ! अंत मे गहरवारो और मोनस लोगो का दिन पलट खाया और १४ वी. शताब्दी से इन पर अपना अधिकार स्थापित किया !

 आजमगढ़

मि. डी. एल. ड्रेक ब्राकमेन ने आजमगढ़ के भरो के सम्बन्ध मे वर्णन करते है कि आर्यों मे से भर भी एक जाति है ! जो कशी,गोरखपुर क्मिस्नरियो मे पाए जाते है ! भर इस जिले मे सन् १९०१ ई मे ६९९६२ थे ! इन के रहने का मुख्य: स्थान देव गाँव, सगरी,मुहम्मदाबाद,घोसी आदि है ! इस जिले मे इस समय अधिक जातिया निवास कर रही है परन्तु एतिहासिक प्रमाणों द्वारा सिद्ध होता कि इस स्थान के प्राचीन निवासी भर तथा राजभर है !

दिह्दुअर परगना महल मे असिल देव नाम के एक राजभर राज करते थे ! जिसके राज्य के समय के तालाब और किले के खंडहर पाए जाते है ! जिसे अरारा के बचगुटी राजपूत अपने वंश का मानते है ! कौड़िया परगना अरौन जहनियांनपुर मे अयोद्धया राय राजभर राज करते थे ! ये असिल देव के वंसज काहे जाते है ! इस समय निजामाबाद एक प्रशिद्ध स्थान है ! यहाँ के राजा एक समय मे परीक्षक भर थे ! उन्होंने अनवन्क के किले को अपने अधिकार मे कर लिया था ! राजा परीक्षक ने धीरे धीरे भरो कि शक्ति प्रबल कि और पुनः सिकंदरपुर आजमगढ़ परगना पर अधिकार किया ! मि. शोरिंग साहब का उल्लेख है कि आजमगढ़ के भरो का राज्य भी रामचंद्र के राज्य के समय अयोध्या से मिला हुआ था ! इस जाति के लोग बहुत से किले,कोट,खाई,तालाब,कुए,पड़ाव आदि प्राचीन स्मृति छोड़ गए है !

आजमगढ़ जिले मे घोसी के निकट हरवंशपुर उचगवाना के किले के चारो और कुंवर और मघाई नदिया खाई नुमा घेरा बनाया गया है ! ऐसा ही कार्य निजामाबाद परगने मे अमीना नगर (मेहा नगर) के निकट हरिबान्ध है! प्राचीन खंडहरों मे चिरइया कोट भी इन्ही लोगो का है ! 

 गाजीपुर

मि. शोरिंग साहब का मानना है कि गाजीपुर का उत्तरी भाग सदियाबाद, पचोतर, जोहराबाद,लक्नेश्वर एक समय मे भरो के अधीन था ! भरो का एक सरदार जोहराबाद मे रहता था ! एक बार उस सरदार ने लक्नेश्वर डीह को उजाड़ दिया था ! लक्नेश्वर का किला भरो के अधिकार मे था ! आज से सात सौ वर्ष पहले अन्य जातियों कि अपेक्षा अदिक भू-भाग पर भरो का अधिकार था !

डॉ. ओल्धम कहते है कि बुद्ध काल के अवनति के समय भर और सायोरी इस देश पर शासन करते थे ! परन्तु कालांतर मे सव्धर्मियो के विरोध- पक्ष ग्रहण करने से नष्ट हो गए ! उस समय इनके सभ्यता का पूर्ण विकाश हो चूका था ! सन् १८७१ ई. मे जजिपुर मे ५६ हज़ार भर थे !

सर हेनरी एलियट का लिखना है कि भर वीर और चतुर कारीगर होते हुए भी नष्ट कर डाले गए इसका मूल कारण यह है कि जब राजपूतो से बलिष्ट जाति यवन, पश्चिमी उत्तरी भारत पर आक्रमण किये, तब राजपूतो को पंजाब आदि स्थान छोड़कर भागना पड़ा! धीरे धीरे मुसलमानों का प्रभुत्व बदने लगा और इन्हें हटना पड़ा ! पश्चिमी राजपूत जब भर राजाओ के यहाँ आये, तब उनकी दशा अच्छी नहीं थी ! भर राजाओ ने उन्हें अपने यहाँ उच्च पदवी दी लेकिन कालांतर मे राजपूतो कि शक्ति बढने पर वो राज्यों मे झगड़ा उत्पन्न करवा दिया और इस बात का फायदा उठा कर वो वहा सत्ता हाशिल कर लिए !

गोरखपुर


निर्माण कार्य जारी है !

बलिया


आर्यों मे से भर भी एक प्राचीन जाति है जो आस पास के सभी जिलो मे आबाद है ! सन् १९०१ ई. मे बलिया मे ४९६०० भर थे ! इसके पूर्व बिहार प्रान्त मे भरो की आबादी अधिक है ! बलिया के प्राचीन खंडहरों, पत्थरो, ईटो आदि से विदित है की यहाँ के प्राचीन शासक भर थे ! उस समय ये लोग लक्नेश्वर,भदोन,सिकंदरपुर मे अधिक आबाद थे! किन्तु बुद्ध काल के उन्नति के समय इनका नाश हो गया! किंवदंती और लोककथाओं के अनुसार उस वक्त भर जिले के बड़े हिस्से पर शासन किये थे ! बलिया के कई बर्बाद किलों के अस्तित्व और अन्य टूटी हुई मिट्टी की इटे भर के समय के हैं!

प्रतापगढ़


एच. आर. नेविल साहब का उल्लेख है की प्रतापगढ़ के भरो के सम्बन्ध मे जहा तक एतिहासिक प्रमाण मिलते है उससे सिद्ध होता है कि इनके पूर्वज सोम वंशीय है ! ये लोग प्रयाग के निकट झूसी से यहाँ आये है ! ये लोग इस प्रान्त के मुख्यत: वासिंदे है ! इस जिले के पट्टी तहसील मे कुछ भर पाए गए है ! इनके किले अदिकतर गंगा और सई के किनारे के जिले मे पाए जाते है ! १३ वी शादी के अंतर्गत भर लोग प्रतापगढ़ मे पराजित हुए ! एटा परगना तहसील प्रतापगढ़ मे भरो का प्राचीन निवास स्थान पाया जाता है ! भरो का प्राचीन किला रांकी,एटा आदि स्थानों मे खंडर के रूप मे मौजूद है ! भरो से धेवरशाह दीक्षित उन्नाव तथा कनपुरिया से कठिन संग्राम हुआ है !

रायबरेली


निर्माण कार्य जारी है !

बहराइच


अवध प्रान्त के अर्न्तगत बहराइच का जिला भी स्थित है चुकी इस प्रान्त पर शताब्दियों तक भर राजाओ का आधिप्त था! अतः यहाँ के पुराने टीले, कुंए, तालाब, पडाव और भग्नावेश इमारते भर जाति के प्राचीन वैभब को अब तक प्रकट कर रही है! अनुमानतः ये विचार किया जाता है कि भर जाति के नाम पर ही इस जिले का नाम भराइच पड़ा है! क्योकि निश्चित रूप से चरदा का किला भरो के सरदार सुहलदेव या सुह्द्वाज का बनाया हुआ है! मसूद के परम शत्रु होने के कारण सुहलदेव का नाम इस जिले कि एतिहासिक घटनाओ मे विशेष रूप से विख्यात है ! हिसामपुर के प्राचीन प्रकट चिन्ह तो इस विचार को अधिक परिपक्व और दृढ बना देते है ! इतिहासकार इस भर को भ्रजित बरतुह के नाम से पुकारते है! वास्तब मे मुसलमानों कि निगाह मे ये जाति विशेष रूप से खटका करती थी! सुहलदेव एक भर राजा थे जो गोंडा बहराइच के विभिन्न भागो मे शासन करता था! इतना ही नहीं बल्कि इनका राज्य विस्तार सीतापुर के पश्चिम पहाडियों से लेकर गोरखपुर के पूर्वी भाग तक फैला हुआ था !

बहराइच राजा सुहलदेव राजभर की 'जगह' है ! यह जगह एक महान ऐतिहासिक महत्व रखता है ! कई पौराणिक तथ्यों. के हिसाब से लोगों का मानना है कि यह भगवान ब्रह्मा की राजधानी थी! जो उन्होंने साधु संतो के लिए पूजा के स्थान के रूप में बनाया था ! इस तथ्य के अनुसार इसे ब्रह्मिच भी कहते है ! बहराइच घने जंगलों से घिरा है कुछ इतिहासकार कहते हैं, ये भर की राजधानी थी. उस समय राजा सुहलदेव राजभर राज करते थे ! इसलिए इसे बहराइच के नाम से बुलाया गया !. कुछ लोगों का मानना है बहराइच नाम महर्षि भर के नाम से लिया गया है जो इस जगह अपने आश्रम मे रहते थे ! बहराइच से लगभग 50 किमी दूर एक प्राचीन बौद्ध मठ के अवशेष मिले है इस जगह को श्रावस्ती के रूप में जाना जाता है और बहराइच के आसपास के सबसे लोकप्रिय स्थलों में से ये एक है !

बस्ती


किंवदंतियों के अनुसार बस्ती अवध का हिस्सा था जो जंगलो से घिरा था ! ऐसा माना जाता है कि इसके अधिकतर भूभाग पर भर का राज था ! इसका कोई निश्चित प्रमाण प्रारंभिक इतिहास में उपलब्ध नही है! जिले में एक व्यापक भर राज्य के सबूत केवल प्राचीन ईंट लोकप्रिय इमारतों के खंडहर से जाना जा सकता है ! 

 

 

 

1 comment:

  1. Kisi ko mil jati hai rangeen bahare,
    Kisi ko chaman bhi nahi milta...
    Kisi ki kabar par banta hai Tajmahal,
    Kisi ko kafan bhi nahi milta.....

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