Saturday, 12 December 2020

Rajbhar Samaj


भरत जाति
भरत जाति ऋगवेदिक काल के आर्यों मे अनेक जातिया थी जो एक दुसरे से परम्परागत रूप से अलग थी! अनु , द्रुहाउ, यदु, तुर्वस,पुरु और भरत इत्यादि आर्यों के कबीले थे ! ऋगवैद से मालूम होता है कि भरतगन (तत्सू) उन कबीलों मे संख्या मे कम था जो आगे चलकर कुरुवंश मे शामिल हो गए ! भरतगन शत्रुओ से घिरे हुए और अल्पसंख्यक थे ! जब वसीष्ठ उनके पुरोहित हुए तब उनकी संतति ज्ञान को प्राप्त हुई! यही भरत जाति ऋगवेदिक काल मे ईसा पूर्व १९३१-१५६९ मे इतने शक्तिशाली बने कि सभी आर्य तथा अनार्य जातियों को जीतकर एक शक्तिशाली बन गयी कि सभी आर्य तथा अनार्य जातियों को जीतकर एक शक्तिशाली समराज्य कि स्थापना किया! अपने कबीले के नाम पर उसने अपने साम्राज्य का नाम "भारतवर्ष" रखा! भारत = भरत; वर्ष= खंड ! कुछ लोगो का मानना है कि दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष का नाम पड़ा! अनेक इतिहासकारों ने इसे अमान्य कर दिया है ! भारतवर्ष के सीमाओ का वर्णन विषणु पुराण मे इस प्रकार दिया है - भारतवर्ष समुन्द्र के उत्तर मे और हिमालय के दक्षिण मे स्थित है और वहा के संतान का नाम भारती है!

ऋगवैद के अनुसार ( सप्तम मंडल, सूक्त ८३, श्लोक ६-१०) सरस्वती नदी के किनारे भरतगन का राजा सुदास राज्य कर रहा था ! जिसका राजपुरोहित विस्वामित्र था ! पर अनबन हो जाने के कारण सुदास ने विस्वामित्र को हटा कर वसीष्ठ को अपना राजपुरोहित घोषित कर दिया! इस पर विस्वामित्र नाराज होकर १० राजाओ के साथ सुदास पर आक्रमण कर दिया ! पर इस युद्घ मे राजा सुदास को जी विजय श्री मिली! इस तथ्य से साबित होता है कि आर्य के १० राजा, भरतगन राजा सुदास के शत्रु थे ! इससे इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजा सुदास आर्योतर शासक रहा हो ! बहुत से इतिहासकारों का अनुमान है कि यही भरत जाति आगे जाकर भर जाति के नाम से जाने जनि लगी !

हरिवंश पुराण , अध्याय ३३ , पृष्ट ५३ को लक्ष्य बनाते हुए हेनरी ऍम. इलियट ने कहा है कि भरत वंश भर जाति से सम्बंधित है ! जयध्वज इस वंश का शासक था, इसी बात को पुस्ती करने के लिए उन्होंने " ब्रहापुरण" को भी साक्ष्य बनाया है ! 'गुस्तब ओपर्ट' जो कि संस्कृत भाषावेत्ता है उनके अनुसार " ब्राहुई" जाति के बाद , प्राचीन जाति 'बरो' या भरो ने हमारा ध्यान आकर्षित किया है ! अनेक प्रमाणों के आधार पर हम ये निष्कर्ष पर पहुचते है कि भरत जाति इस देश कि मूल निवासी थी! इस जाति को आर्यों से ही नहीं अनार्यो से भी भीषण युद्ध करनी पड़ी! इस बहादुर जाति के प्रबल शासक सुदास से अकेले सभी ३० राजाओ से युद्ध करना पड़ा जीने नाम है - १. शिन्यु २. तुवर्श ३. द्रुहाहू ४. कवश ५. पुरु ६. अनु ७. भेद ८. वेकर्ण १०. अन्य वेकर्ण ११. यदु १२. मत्स्य १३. पक्थ १४. भालन १५. अलीना १६. विशानिन १७. अज १८. शिव १९. शीग्र २०. यक्षयु २१. यद्धमादी २२. यादव २३. देवक मान्य्मना २४. चापमाना २५. सुतुक २६. उचथ २७. क्षुत २८. वुद्ध २९. मनयु ३०. पृथु !

प्राचीन काल में रुहेलखण्ड: प्राचीन काल में यह क्षेत्र पंचाल राज्य तथा विभाजित पंचाल के उत्तरी पंचाल में नाम से जाना जाता था। पूर्व दिशा में गोमती, पश्चिम में यमुना , दक्षिण में चंबल तथा उत्तर में हिमालय की तलहटी से घिरे पंचाल का भारतीय संस्कृति के विकास एवं संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।

प्राचीन काल में कुमायूँ के मैदानी क्षेत्र से लेकर चम्बल नदी तथा गोमती नदी तक विस्तृत यह क्षेत्र प्राचीन काल से छठी शताब्दी ई० पू० तक पंचाल राज्य के अन्तर्गत रहा। इसके पंचाल नामकरण के बारे में अनेक मान्यतायें हैं जैसे भरतवंशी राजा भ्रम्यश्व के पाँच पुत्रों में बंटने के कारण अथवा कृवि , तुर्वश , केशिन , सृंजय एवं सोमक पाँच वंशों द्वारा यहाँ राज्य करने के कारण प्राचीन काल में इसका नाम पंचाल पड़ा इत्यादि।

प्राचीन काल में जब आर्य शक्ति का केन्द्र ब्रह्मावर्त था तब पंचाल एक समुन्नत राज्य था। राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा , इन्ही सम्राट भरत का राज्य सरस्वती नदी से लेकर अयोध्या तक फैला हुआ था तब गंगा - यमुना के दोआब में स्थित पंचाल उनके राज्य का सम्पन्न भाग था। सम्राट भरत के ही काल में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई । राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा था तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था। राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ॠग्वेद में वर्णित ' दाशराज्ञ युद्ध ' से समीकृत करते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का बहुत विस्तार हुआ ।
राजा सुदास के पश्चात संवरण के पुत्र कुरु ने अपनी शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रुप से 'कुरु - पंचाल ' कहलाया। परन्तु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतन्त्र हो गया।
नाग्भारशिव जाति
नाग्भारशिव जाति हम देख चुके है कि सुदास भरत जाति से जुड़े थे जो कालांतर मे जाकर भर जाति कहलाई ! दिवोदास और उसके पुत्र सुदास दोनों के नाम के अंत मे "दास" लगा हुआ है जो ये दर्शाता है वो दास या नाग वंश से जुड़े हुए थे ! प्रत्येक नागो के लिए दास नाम उनकी प्रजाति का नाम बन गया था ! नाग वंश का वर्णन वेदों मे और पुरानो मे भरा पड़ा है ! नागो के साथ शिव शब्द कैसे जुड़ गया इसका एक लम्बा इतिहास है ! भरत वंश के लोग शिव कि पूजा किया करते थे शिवलिंग को धारण करने के कारण नाग, भारशिव कहलाने लगे ! यही भारशिव वंश के लोग भर नाम से प्रशिद्ध हुए !

भर शब्द कि व्याख्या भारशिव के अर्थ मे करते हुए डॉ . काशीप्रसाद जयसवाल कहते है कि विन्ध्याचल क्षेत्र का भरहुत , भरदेवल, नागोड़ और नागदेय भरो को भारशिव साबित करने का अच्छा प्रमाण है! मिर्जापुर , इलाहबाद तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र भरो के प्रदेश रह चुके है ! इस तरह भर का संस्कृत नाम भारशिव है ! इस युग को कुषाण -युग कहा जाता है ! जब भर रायबरेली के शासक थे (७९०- ९९० AD ) भर राजसता स्थापित करने के महत्वाकांक्षी थे ! भारशिव एक जाति का नाम नहीं बल्कि उनकी उपाधि थी ! भारशिव विन्द्य्शक्ति कि जन एकता का प्रतिक थी ! तीसरी शताब्दी के पूर्वाध से प्रारंभ होता हुआ उत्तर भारत तथा मध्य भारत पर नाग्वंशियो का राज्य था ! शुरू मे नाग वंश यहाँ मथुरा और ग्वालियर मे ही था पर कालांतर मे धीरे धीरे इसका विस्तार होकर विदर्भ, बुंदेलखंड तक फैलता चला गया ! ऐसी मान्यता है कि भर लोग मुख्यत: दो कुलो मे बाते हुए थे ! एक शिवभर और दूसरा राजभर . शिबभरो का कार्य राजसता से जुदा नहीं था जबकि राजभर का कार्य राजसत्ता स्थापित कर शासन चलाना था ! राजभर प्रवरसेन को अपना नेता चुना (२८४ ई.) ! गंगा के पवित्र जल कि सोगंध खाकर दोनों एक हुए और कालांतर मे "भारशिब" कहलाए ! भारशिबो के गौरबशाली इतिहास वीरान खंडर, टीले और मंदिर स्तूप उनके प्रकर्मी अतीत को आज भी जीवित रखे हुई है! शिव- पार्वती कि उपासना उनके मंदिर का प्रबल उदाहरण है !

भारशिव नाग वंश से भर शब्द कि उत्पत्ति कि कल्गनना तीसरी या चौथी शताब्दी से निरुपित होती है ! भवनाग ही भारशिव वंश का प्रबल शासक माना जाता है ! भर शब्द भरत जाति से बना है ! इस वाक्य को इस प्रकार कहना कि भर शब्द भारशिव नागो से बना है ! कोई एतिहासिक अंतर नहीं जान पड़ता है ! डॉ. कशी प्रसाद जयसवाल ने भारतीय इतिहास मे ११५ A.D का काल जोड़ कर भारशिव काल कहा है और इस तरह से इतिहास मे नया अध्याय जुड़ गया !


महाराजा भरद्वाज

भर जाति का बलिदान अमर है ! वह देश के लिए था ! देश की रक्षा मे अनगिनत बलिदान चढ़ाने वाली जाति मे भर प्रथम थे ! भर जाति के सम्राटो का क्रमबद्ध इतिहास खोजना अति कष्ट साध्य कार्य है ! जब कही पर किसी सम्राटो का इतिहास प्राप्त भी होता है तो इसके संतति का कोई इतिहास नहीं मिलता है ! अतः वान्श्वाली का क्रम टुटा हुआ सा प्रतीत होता है !

भारशिव वंश के महाराजा भारद्वाज अवध के शासक थे ! महाराजा भारद्वाज के शासनकाल का निर्धारण करना बहुत मुस्किल है ! ऐसा माना जाता है की अवध क्षेत्र मे भर जाति की प्रधानता प्रगेतिहासिक काल से ही थी ! वे अवध से लेकर नेपाल की सीमा तक फैला हुआ था ! टालमी ने जो भारत का मानचित्र अपने प्रवास के दौरान बनाया था जिसका प्रकासन : इंडियन एंटीक्वेरी" मे वर्गीज द्वारा किया गया है ! उनके अनुसार भरदेवी आज का भरहुत ही है जिसे भरो ने बसाया था ! इसकी संपुष्टि जनरल कनिम्घम ने " अर्किलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया" मे किया था ! "बंगाल एसियाटिक जनरल वोलुम XVI , पृष्ट ४०१-४१६ ) मे भी इस तथ्य को स्वीकार किया गया है !महाराजा भारद्वाज उसी काल मे भारशिवो मे एक प्रबल शासक थे ! इस विषय मे एक कहानी प्रचलित है जो मै यहाँ बता रहा हूं!

भारत के प्राचीनतम नगरो मे अवध की पहचान होती है ! इस नगर को बसने वाले देश के मूल लोग ही थे ! इस बात के अनेक प्रमाण उपलब्ध है की यहाँ के प्रबल शासक भर जाति के लोग रह चुके है ! क्ष्री रामचंद्र के पहले भी यहाँ भरो का विस्तृत साम्राज्य था ! प्राचीन अयोध्या को सूर्यवंशी ने ध्वस्त कर डाला, जिसे यहाँ के मूल जातियों ने बसाया था ! सूर्यवंश के पतन के बाद अयोध्या पुन: भरो के अधिकार क्षेत्र मे आ गया ! इस आशय का वर्णन सर सी. इलिएट ने अपने ग्रन्थ "क्रोनिकल्स ऑफ़ उन्नव" मे विस्तृत रूप से करते है ! "इंडियन एंटीक्वेरी" संपादक जैसे वर्गीज (१८७२) मे "आन दि भर किंग्स ऑफ़ इस्टर्न अवध" नामक शीर्षक मे गोंडा का बी. सी. एश. अंग्रेज अधिकारी डब्लू. सी. बेनेट कहता है की अवध के पूर्व मे ४०० वर्षो तक (१०००-१४०० ई.) भरो का साम्राज्य था !

इसी तरह का वर्णन फरिस्ता रिकॉर्ड मे भी मिलता है ! जो "तबकत- ई-नसीरी" मे भी मिलता है ! प्रकाशन विभाग, सुचना और प्रशासन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित (१९७१ ई.), हमारे देश के राज्य "उत्तर प्रदेश" के पृष्ट १६ और १७ पर अंकित है की सन् ११९४ से १२४४ ई. तक अवध पर भरो का सम्राज्य था ! अवध क्षेत्र मे भरो की बहुलता के कारण क्षावास्ती पर सुहलदेव (१०२७-११७ ई.) तथा उनके वंशजो ने बहुत दिनों तक साम्राज्य स्थापित किया ! देखे ( हिस्ट्री ऑफ़ बहराइच, पृष्ट ११६-११७; आइना मसूदी, तरजुमा मिराते, पृष्ट ७८, संहारिणी चालीसा)

भारद्वाज नामक भारशिव वंश ने इसी अवध तथा गोरखपुर क्षेत्र पर अपना राज्य स्थापित किया ! उसके बाद उसका उतराधिकारी सुरहा नामक शासक हुआ ! भारद्वाज उपनाम की जो गणना सेन्सस रिपोर्ट (१८९१) मे भरो के साथ संयुक्त रूप से दि गयी है, वह इस तथ्य को साथ मे या ध्यान मे रख कर दिया गया है की ये भारद्वाज उपनाम वाले लोग ब्राह्मण जाति के भारद्वाज उपनाम वाले लोगो से अलग थे ! सन् १८९१ ई. की जनगणना के अनुसार बलिया मे ८६, गोरखपुर मे १४९८ तथा आजमगढ़ मे २५६३ लोग भारद्वाज उपनाम से जाने जाते थे जो भर जाति से सम्बंधित थे !

भरो मे भारद्वाज उपनाम ऋषि भारद्वाज से नहीं आया है बल्कि ये उपनाम यही भर राजा भारद्वाज के नाम से बना है ! वे अवध के राजा भारद्वाज की संतति के रूप मे लिखते है न की ऋषि भारद्वाज के रूप मे, जिनसे भारद्वाज गोत्र बना !

राजभार जाति अंग्रेज इतिहासकारों की दृष्टी मे

अंग्रेजो द्वारा भर जाति के विषय मे लिखी गई सामग्री के सम्बन्ध मे उनकी जितनी प्रशंशा की जाए उतनी ही कम है! राजभार जाति वह जाति है जिसने सतयुग, त्रेता, द्वापर आदि युगों मे भी अपना डंका बजाय है! गोरखपुर गजेटियर के पृष्ट १७३ और १७५ मे लिखा है की जब अयोध्या का नास हो गया तब वंहा के राजाओ ने रुद्रपुर मे अपनी राजधानी स्थापित की और श्री रामचंद्र के बाद जो लोग गद्दी पर बैढे, वे लोग भर तथा उनके समकालीन जातियो द्वारा परास्त हुए!

जोनपुर गजेटियर के पृष्ट १४८ मे लिखा है कि जब भरो के ऊपर कठोरता का व्यवहार होने लगा तब कुछ पराधीन भर जाति के लोग अपनी जाति का नाम बदल दिया! समयानुसार धीरे धीरे क्षत्रिय मे मिल गए! बलिया गजेटियर के पृष्ट ७७ और १३८ मे कहा गया है कि आर्यों मे से भर भी एक प्राचीन जाति है! इस जाति के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा है!

आज भारत के किसी भी क्षेत्र मे जाइये इस जाति के नाम पर स्थानों के नाम अवश्य मिल जाएँगे! बिहार प्रान्त का नाम भी इसी जाति के नाम पर पड़ा है! दी ओरिजनल इन है विटनेस ऑफ़ भारतवष के पृष्ट ४० पर लिखा है कि कासी के निकट बरना नामक नदी तथा बिहार नामक रास्त्र भर सब्द से निकला है! एक समय मे भर लोग इस प्रान्त पर शासन करने वालो थे और इन्ही कि प्रधानता भी थी बिहार मे गया के पास बार्बर पड़ी पर शिवलिंग स्थापित है इसे भी एक भर राजा ने ही बनवाया है! 

अंग्रेज इतिहासकार

मिस्टर शोरिंग
डॉ. बी. ए. स्मिथ
डी. सी. बैली
मिस्टर रिकेट्स
मि. गोस्त्ब आपर्ट पी. एच. डी.
मिस्टर पी. करनेगी
लेफ्टिनेंट गवर्नर मि. थानसन
एच. आर. नेविल
मि. डब्लू क्रोक तथा मि. सर हेनरी इलिएट
एच. एम. एलियट
मि. डव्लू. सी. बेनट
मि. सर ए. कनिघम
बन्दोवस्ती ऑफिसर( अवध प्रान्त) मि. उड़वार्ण
मि. डी. एल. ड्रेक ब्रक्मैन
मि. सी. एश. एलियट
डॉ. ओलधम



मिस्टर शोरिंग:

भर या भार जाति उतरी भारत के गोरखपुर से मध्य भारत के सागर जिले तक पाई जाति है! यहाँ के निवासी इस जाति को भार, राजभार, भरत तथा भरपतवा के नाम से जाने जाते है! आजमगढ़ के भरो का राज्य श्री रामचंद्र के राज्य के समय अयोध्या से मिला हुआ था! अवध प्रान्त मे भरो कि शक्ति बड़ी ही प्रबल थी! प्रयाग से काशी तक इनका सुदृढ़ शासनाधिकार था! भर जाति को असभ्य जाति से जोड़ना सही न होगा क्योकि इनके कार्य कलापों को देखकर किसी राजवंश का इन्हें कहा जा सकता है! व्यवासय के आधार पर उत्तर प्रदेश मे इनका कोई निश्चित व्यापार या व्यवासय नहीं है जैसा कि अन्य हिन्दू जातियों को व्यवासय के आधार पर जाना जाता है! इनका व्यवासय प्राचीन काल मे युद्घ करना था जो इन्हें क्षत्रियो से जोड़ता है! (प्रमाण के लिए पढिये हिन्दू त्रैएब्स एंड कास्ट वालूम फास्ट पृष्ट ३५७) ! भर जाति के लोग पूर्ब काल मे हिन्दू धर्म के अनुसार उपासना करते थे! ( हिन्दू त्रैएब्स एंड कास्ट पृष्ट ३६०,३६१,३६२)

डॉ. बी. ए. स्मिथ

कुछ राजपूत प्राचीन निवासियो कि संतान है अर्थात मध्य प्रान्त तथा दक्षिण के गोंड और भर क्रमश: उन्नति कर के अपने को राजपूत कहने लगे! बुन्देल खंड के चंदेल, दक्षिण के राष्ट्र कूट राजपूताने के राठोर और मध्यप्रांत के गोंड तथा भर यहाँ के राजपूत संतान है! ( अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया चतुर्थ संस्करण) राजपूतो कि उत्पति गोंडा ख्ख्द और भर जाति से हुई है! यह भर जाति सूर्यवंशी, नागवंशी, भारशिव और बाद मे राजपुत्र कहलाई( देखे कंट्री बुसन तो दी हिस्ट्री ऑफ़ बुन्देल खंड , इंडियन अन्तेकर्री XXXII १९०८ पेज १३६,३७ ) !

डी. सी. बैली

अयोध्या के शाशक रामचंद्र ने भर शाशक, केरार को जौनपुर मे हराया था! यदि रामचंद्र (दशरथ के पुत्र ) भर को हराए थे तो ऐसा माना जा सकता है कि भर जाति अति प्राचीन है! ( देखे सेंसेस ऑफ़ इंडिया वोलुम XVI पेज २२१ (१८९१)!

मिस्टर रिकेट्स

भरो का सम्बन्ध उच्च जातियो से है! कही कही राजपूत लोग अपने लड़को कि शादिया भी करते है! इसके प्रमाण विशेस रूप से पाए जाते है इलाहाबाद मे भरोर्ष, गर्होर्स तथा तिकित लोग भरो के वंशज काहे जाते है! तिकित जाति कि एक लड़की से एक चौहान क्षत्री ने शादी कि थी और उसका लड़का उस भर राजा के राज्य पर शाशन करता था! कही कही राजपूत लोग अब भी अपने लड़को कि शादिया भरो कि लड़कियों से करते थे! (रिकेट्स रिपोर्ट पृष्ट १२८ )! प्रयाग के आसपास कि भूमि को उपजाऊ तथा सभ्य बनाने मे भरो ने अधिक परिश्रम क्या था!

मि. गोस्त्ब आपर्ट पी. एच. डी.

एक भर राजा था जिसके ४ पत्नी थी जिसमे एक स्वजतिए थी और तिन अन्य जाति कि थी, अंत मे जिन वंशो के पास आजकल भूमि है और अपने को प्राचीन राजपूत कहते है! चाहे वो सम्मान के भय और समाज कि लज्जा से बात को स्वीकार न करे, परन्तु वास्तव मे भरो के वंसज है! क्योकि किसी समय इस देस के प्रतेक एकड़ भूमि पर भरो का आदिपत्य और बोलबाला था! (दी ओरिजनल तैवितिंस ऑफ़ भारत्वार्स पृष्ट ४४,४५,४६)!

मिस्टर पी. करनेगी

भर लोग राजपूत वंस के है और पहले ये लोग यहाँ के राजा थे! कालांतर मे बोद्ध मत को स्वीकार कर लेने के पश्चात इनके प्रचारथ अदिकांश अन्य देसों मे चले गए! इनकी मुख्य जाति राजभार , भरद्वाज, और कनोजिया कि है! भर लोग पुराने राजपूत तथा पूर्वी अवध के प्राचीन निवासी है! ( देखे रिसर्च ऑफ़ अवध पृष्ट १९ )!

लेफ्टिनेंट गवर्नर मि. थानसन

यधपि भर लोग अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लगभग २०० वर्षो तक युद्घ करते रहे परन्तु असंगठित और कम संख्या मे होने के कारण तथा स्वधार्मियो के विरोध पक्ष ग्रहण करने से अधिक समय तक वे टिक न सके, तथापि इनके लिए यह कम गौरव की बात नहीं है जो देश की मर्यादा और स्वतंत्रता के लिए अपने सम्पूर्ण वैभव को नष्ट कर दिया ( देखे त्रिएब्स एंड कास्ट पृष्ट ३६३) !Top

एच. आर. नेविल

प्रतापगढ़ के भरो के सम्बन्ध मे जहा तक एतिहासिक प्रमाण मिलता है इससे सिद्ध होता है की इनके पूर्वज सोम्व्न्सीय है !( देखे प्रतापगढ़ गजियेटर पृष्ट १४४,१४५,१६७)

मि. डब्लू क्रोक तथा मि. सर हेनरी इलिएट

किसी समय इस जाति की सभ्यता का विकास पूर्ण रूप से था! भरो का सम्बन्ध भरताज वंश से था जिनकी पीढी जयध्वज से सम्बंधित है ! सम्भ्बतः महाभारत काल मे ये लोग "भरताज" नाम से विख्यात थे और पूर्बी भारत खंड मे भीमसेन द्वारा पराजित हुए थे! राम राज्य के समय इनका कुछ आभास मिलता है! इनके राज्य का विस्तार अवध, काशी,पश्चिमी मगध , बुन्देल खंड, नागपुर और सागर के दक्षिणी प्रान्त तक था! ( देखे ओरिजनल हेविटेंस ऑफ़ भारत वर्ष और इंडिया पृष्ट ३७, ३८ )

एच. एम. एलियट

भर स्वं को राजपूत से उच्च मानते है पूर्ब कथित पदवी राज के कारण नहीं! वे परस्पर एक दुसरे के साथ खाते पीते नहीं थे! राजभार लोग खुद को राजपूत मानते है! राजपूत और राजभार लोग दोनों ही राजाओ के वंशज है जो सूर्यकुल और चंद्रकुल से सम्बंधित है! ( देखे रेसेस ऑफ़ दी नॉर्थ- वेस्टर्न प्रोविन्सेस ऑफ़ इंडिया वोलुम फर्स्ट लन्दन १८४४)

मि. डव्लू. सी. बेनट

बुन्देल खंड मे अजयगढ़ और कालिंजर का इतिहास प्रकट करता है की एक आदमी जिसका नाम नहीं दिया गया है, वही परिवार का संचालक था! इसी के अधिकार मे अजयगढ़ का किला था! इस वंश की एक महिला गद्दी पर बिधि थी जिसका भाई दल का अंतिम राजा कन्नौज को परास्त कर के सम्पूर्ण ढाबे पर अधिकार क्या था! इसके बाद दल की मालकी तथा कालिंजर का नाश हुआ! इनके पास कड़ा और कालिंजर के दो किले थे! इनका विस्तार मालवा तक था! दक्षिण अवध के सांसारिक व्यावाहरो सि पूर्ण सिद्ध की ये शहजादे भर थे और घाघरा सि मालवा तक राज्य करते थे ! (देखे दी त्रिएब्स एंड कास्ट वोलुम सेकंड पृष्ट ३ ) !

मि. सर ए. कनिघम

किसी समय देश मे भरो का बोल बाला था! जिनके प्रभुत्व और सभ्यता की प्राचीन परंपरा आज तक चली आ रही है ! ( देखे हिन्दू त्रिएब्स एंड कास्ट वोलुम फर्स्ट पृष्ट ३६२)

बन्दोवस्ती ऑफिसर( अवध प्रान्त) मि. उड़वार्ण

भर जाति शुर वीर पराकर्मी रन कुशल और कला निपुण थी! उनकी सभ्यता स्वयंकी उपार्जित सभ्यता है !

मि. डी. एल. ड्रेक ब्रक्मैन

आर्यों मे सि भर भी एक जाति है! एतिहासिक प्रमाणों द्वारा ये सिद्ध है की आजमगढ़ के प्राचीन निवासी भर तथा राजभर है ! (देखे आजमगढ़ गजेटियर पृष्ट ८४ और १५५)

मि. सी. एश. एलियट

भरो ने ईसा के थोड़े ही काल बाद आर्य सभ्यता का विकाश किया! भरो ने कनक सेना की अध्यक्षता मे अपनी विपक्षी कुसनो को गुजरात तथा उतरोतर नामक पहाडो की और मार भगाया!

डॉ. ओलधम

बुद्ध काल के अवनति के समय भर और सोयरी इस देश पर शासन करते थे! अंग्रेजो ने भर, राजभर जाति के विषय मे जो कुछ भी लिखा है उस सबको एक छोटी सि पुस्तक मे समेट पाना बहुत ही मुस्किल कार्य है! यदि हम चाहे की भर जाति के विषय मे उनके द्वारा लिखी गई रिपोर्ट, जनगणना रिपोर्ट, गजेटियर्स आदि का अध्यन ही कर ले तो इनके लिए के स्सल लग जाएँगे!




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